धर्म(Religion)
आज धर्म की परिभाषा है खराब, होता शोषण चाहे हो जो समाज, पहले धर्म का तात्पर्य लोगों को सत्कर्म का रास्ता, परंतु अब लोग करें धर्म का इस्तेमाल सत्ता का रास्ता, धर्म की नींव ही बदल डाली, अब प्रत्येक धर्म की अपनी एक दुख भरी कहानी, पहले धर्म शिक्षा की तरफ भी जोड़ता था, अब धर्म तो केवल इंसान को साथ तोड़ता जाता, लोग धर्म का अर्थ अब पूजा-अर्चना से जानते, पहले धर्म को लोग अपने तर्क के साथ पहचानते, अब धर्मों में छुपी है एक वैचारिक बीमारी, सब जानते हैं कि झगड़े कुछ दिन बेचारी, धर्म का आचरण बहुत ही निंदनीय होता जाता, प्रत्येक धार्मिक स्थल में पैसा जेब से कैसे निकले होता जाता, सब जगह दानपत्र की लाईन भारी, कुछ जगहों पर भिखारी जगह पर अनाउंसमेंट भारी, दान इच्छा से करें या बिना दान के कोई लाभ नहीं, पर इंसान भी किसी का सहारा चाहे पर शिक्षा नहीं, तर्क की बात धर्मगुरुओं को पसंद नहीं, कहें करो विश्वास